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    Home»उत्तराखण्ड»क्या आधारहीन है “पी वैल्यू एनालिटिक्स” की सर्वेक्षण रिपोर्ट !
    उत्तराखण्ड

    क्या आधारहीन है “पी वैल्यू एनालिटिक्स” की सर्वेक्षण रिपोर्ट !

    Dainik Uttarakhand NewsBy Dainik Uttarakhand NewsSeptember 2, 2025Updated:September 10, 2025No Comments
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    देश के 10 असुरक्षित शहरों में देहरादून को शामिल करना गलत

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    अनंत आवाज ब्यूरो

    देहरादून। विगत दिनों एक निजी सर्वे कम्पनी/डेटा साइंस कम्पनी “पी वैल्यू एनालिटिक्स“ द्वारा समाचार पत्रों के माध्यम से NARI-2025 शीर्षक के साथ एक सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, जिसमें देहरादून को देश के 10 असुरक्षित शहरों में सम्मिलित किया गया है। राज्य महिला आयोग द्वारा स्पष्ट किया गया है कि उक्त सर्वेक्षण न तो राष्ट्रीय महिला आयोग अथवा राज्य महिला आयोग द्वारा कराया गया है, और न ही किसी अन्य सरकारी सर्वेक्षण संस्थान द्वारा किया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा भी उक्त सम्बन्ध में आयोग स्तर से किसी भी प्रकार का सर्वेक्षण कराये जाने का खंडन किया गया है। साथ ही उक्त रिर्पोट को निजी सर्वे कम्पनी द्वारा स्वंतत्र रूप से तैयार किया जाना बताया गया है। अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार यह पहल पूरी तरह पी वैल्यू एनालिटिक्स का स्वतंत्र कार्य है, जो अपराध के आकडों के आधार पर नहीं अपितु व्यक्तिगत धारणाओं पर भी आधारित है।

    सर्वेक्षण रिपोर्ट के अध्ययन से स्पष्ट है कि उक्त सर्वेक्षण देश के 31 शहरों में किया गया है, जो CATI (Computer Assited Telephonic Interviews) एंव CAPI (Computer Assited Personal Interviews) पर आधारित है। अर्थात सर्वेक्षण कम्पनी द्वारा महिलाओं से भौतिक रूप से सीधा संवाद नहीं किया गया, मात्र 12770 महिलाओं से टेलीफोनिक वार्ता के आधार पर उक्त रिर्पोट को तैयार किया गया है। देहरादून में महिलाओं की लगभग 09 लाख की आबादी के सापेक्ष केवल 400 महिलाओं के सैम्पल साइज के आधार पर इलेक्ट्रॉनिकली कनेक्ट करके निष्कर्ष निकाला जाना प्रतीत होता है।

    रिपोर्ट के अनुसार मात्र 4 प्रतिशत महिलाओं द्वारा एप अथवा तकनीकी सुविधाओं को उपयोग किया जा रहा है, जबकि महिला सुरक्षा के लिये विकसित गौरा शक्ति एप में महिलाओं के 1.25 लाख रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं। जिसमें से 16649 रजिस्ट्रेशन मात्र देहरादून जनपद के ही हैं। इसके अतिरिक्त डायल 112, उत्तराखण्ड पुलिस एप, सी0एम0 हेल्पलाइन, उत्तराखण्ड पुलिस वेबसाइट के सिटीजन पोर्टल का महिलाओं द्वारा नियमित रूप से प्रयोग किया जा रहा है। स्पष्ट है कि सर्वेक्षण रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित नहीं है।

    सर्वेक्षण के मानकों में पुलिस से सम्बन्धित 02 बिन्दु हैं, 01: पुलिस पैट्रोलिंग एवं 02: क्राइम रेट। बिन्दु संख्या 01 पुलिस पेट्रालिंग में सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक सुरक्षित शहर कोहिमा का स्कोर 11 प्रतिशत है, जबकि देहरादून का स्कोर 33 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि देहरादून पुलिस पेट्रोलिंग के आधार पर सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक सुरक्षित शहर कोहिमा से भी ऊपर है। हर्रेसमेन्ट एट पब्लिक प्लेसेस शीर्षक में पूरे देश का स्कोर 07 प्रतिशत है, जबकि देहरादून का 6 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि देहरादून में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाएं अन्य शहरों की तुलना में स्वंय को ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं। हाई क्राइम रेट शीर्षक में देहरादून का स्कोर 18 प्रतिशत बताया गया है, जो तथ्यों पर आधारित नहीं है।

    माह अगस्त में जनपद देहरादून में डायल 112 के माध्यम से कुल 12354 शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें से मात्र 2287 (18 प्रतिशत) शिकायतें महिलाओं से सम्बन्धित हैं। उक्त 2287 शिकायतों में से भी 1664 शिकायतें घरेलू झगडों से सम्बन्धित हैं। शेष 623 शिकायतों में से भी मात्र 11 शिकायतें लैंगिक हमलों/छेडखानी से सम्बन्धित हैं। स्पष्ट है कि महिला सम्बन्धी कुल शिकायतों में से छेडछाड की शिकायतों का औसत 01 प्रतिशत से भी कम है। उक्त शिकायतों में पुलिस का औसत रिस्पांस टाइम 13.33 मिनट है। अर्थात महिला सम्बन्धी अपराधों के प्रति पुलिस की संवेदनशीलता प्राथमिकता पर है।

    वर्तमान में देहरादून में बाहरी प्रदेशों के लगभग 70 हजार छात्र/छात्राएं अध्ययनरत हैं, जिनमें से 43% संख्या छात्राओं की है। उक्त छात्र/छात्राओं में काफी संख्या में विदेशी छात्र/छात्राएं भी अध्ययनरत हैं। उक्त छात्र/छात्राओं द्वारा सुरक्षित परिवेश में जनपद देहरादून में निवास करते हुए शिक्षा ग्रहण की जा रही है।

    महिला सम्बन्धी शिकायतों की सुनवाई एवं निराकरण हेतु जनपद स्तर पर एवं प्रत्येक थाना स्तर पर महिला हैल्प लाइन/हैल्प डेस्क स्थापित हैं। उत्तराखण्ड पुलिस एप में आकस्मिक स्थिती हेतु S.O.S. बटन स्थापित है।साथ ही साथ नगर क्षेत्र में वन स्टाप सेंटर भी संचालित हो रहा है। महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु जनपद में पुरूष चीता के साथ-साथ 13 गौरा चीता भी चल रही हैं। जिनमें प्रशिक्षित महिला पुलिसकर्मियों को ही नियुक्त किया गया है। साथ ही साथ ऐसे भीड भाड वाले स्थानों जहां महिलाओं का आवागमन ज्यादा है वहां पिंक बूथ स्थापित किये गये हैं एवं एकीकृत सीसीटीवी सिस्टम भी स्थापित किया गया है। जिसका कंट्रोल रूम सम्बन्धित थाने को बनाया गया है। समय समय पर महिलाओं के लिये आत्मरक्षा हेतु प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किये जा रहे हैं। साथ ही साथ जनपद में स्थित शैक्षणिक संस्थानों एवं ऐसे कार्यस्थलों जहां महिलाएं कार्यरत हैं में जनपद पुलिस द्वारा निरंतर महिला सुरक्षा सम्बन्धी शिविर आयोजित किये जा रहे हैं।

    महिलाओं को उनके साथ होने वाले अपराधों के प्रति संवेदित किया जा रहा है एवं अपराधों की सूचना देने हेतु प्रेरित किया जा रहा है। महिला अपराधों को तत्काल पंजीकृत करते हुए त्वरित निस्तारण करने हेतु सभी थानों को निर्देशित किय गया है। वर्ष 2025 में बलात्कार, शील भंग, स्नेचिंग जैसी सभी घटनाओ का शत प्रतिशत अनावरण किया गया है।

    देहरादून शहर में स्मार्ट सिटी के एकीकृत कंट्रोल रूम के 536, पुलिस कंट्रोल रूम के 216 सीसीटीवी कैमरों के साथ लगभग 14000 सीसीटीवी कैमरे कार्यशील हैं, जिनकी सहायता से पुलिस द्वारा निरंतर अपराध एवं अपराधियों पर सतर्क दृष्टि रखी जा रही है। सभी कैमरों की गूगल मैपिंग की जा चुकी है।

    उक्त तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि एक निजी कम्पनी के स्वंतत्र रूप से महिला सुरक्षा सम्बन्धित सर्वे के आधार पर देहरादून शहर को देश के 10 सबसे असुरक्षित शहरों में रखा जाना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। सर्वेक्षण में किन लोगों को सम्मिलित किया गया यह स्पष्ट नहीं है। सर्वेक्षण में भाग लेने वालों की आयु, शिक्षा, रोजगार स्थिति के सम्बन्ध में स्पष्टता नहीं है। प्रतिभागी स्थानीय निवासी थे अथवा पर्यटक यह भी स्पष्ट नहीं है, क्योकि सुरक्षा की धारणा आयु तथा जीवनशैली के आधार पर भिन्न होती है। जहां किशोरियां एक ओर रात्रि में असुरक्षित महसूस कर सकती हैं, वहीं कामकाजी महिलांए अलग अनुभव रख सकती हैं। स्थानीय लोगों की तुलना में बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक शहर से अपरिचित होने के कारण सुरक्षा व्यवस्था के सम्बन्ध में अलग राय रख सकते हैं।

    इसके अतिरिक्त यह भी विचारणीय है कि मुंबई में नाइट लाइफ है, इसलिये रात्री में स्वतंत्र रूप से घूमना एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है, जबकि दूसरी ओर देहरादून एक शान्त शहर है, यहां यह पैरामीटर प्रासंगिक नहीं हो सकता। स्पष्ट है कि सर्वेक्षण में विभिन्न शहरों कि सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधताओं/भिन्नताओ को ध्यान में नहीं रखा गया है। प्रत्येक शहर के लिये एक जैसा सैम्पल साइज रखना भी प्रासंगिक नहीं हो सकता, क्योंकि देहरादून की महिला आबादी के मात्र 0.04 प्रतिशत लोगों की राय को सम्पूर्ण देहरादून की राय मानकर निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है।
    देहरादून का एनसीआरबी का डेटा दिखाता है कि देहरादून में अपराध दर मैट्रो शहरों से कम है। स्पष्ट है कि सर्वे मात्र अवधारणाओं पर आधारित है न कि वास्तविक तथ्यों/आकंडो पर।

    देहरादून शहर हमेशा से सुरक्षित शहरों में गिना जाता है, यही कारण है कि देहरादून में प्रतिष्ठित केन्द्रीय संस्थानांे के साथ-साथ ख्याति प्राप्त शैक्षणिक सस्थान भी स्थित हैं। जिनमें देश विदेश के छात्र/छात्राओं अध्ययनरत हैं। इसके अतिरिक्त देहरादून में अनेकों पर्यटक स्थल भी स्थित हैं, जिसमें वर्ष भर भारी संख्या में पर्यटकों का आवागमन बना रहता है। छात्र/छात्राओं तथा पर्यटकों की निरंतर बढती संख्या स्वयं में इस बात का प्रमाण है कि देहरादून शहर आम जनमानस एवं बाहरी प्रदेशों से आने वाले लोगों/पर्यटकों/छात्र-छात्राओं के लिये कितना सुरक्षित है।

    हम सर्वेक्षण के निष्कर्षों का सम्मान करते हैं, लेकिन नीतिगत निर्णयों के लिये यह आवश्यक है कि सर्वे की पद्धति मजबूत हो। कृपया स्केल्स, सैपंलिंग, प्रश्नफ्रेमिंग और सुरक्षा की परिभाषा के सम्बन्ध में स्पष्टता प्रदान करें।

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